जनसंख्या बल

आबादी किसी भी देश की तरक्की का बड़ा आधार होती है, मगर इसके साथ ही संसाधनों पर उसका बोझ बढ़ने से कई दुश्वारियां भी पैदा होती हैं। इसलिए स्वाभाविक ही आबादी के मामले में भारत के शीर्ष पर पहुंचने को लेकर एक तरफ उत्साह है, तो दूसरी तरफ चिंताएं भी गहरी हुई हैं। संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष के आंकड़ों के मुताबिक भारत ने आबादी के मामले में चीन को पीछे छोड़ दिया है।

हालांकि कुछ लोगों में इस आंकड़े को लेकर भ्रम की स्थिति बनी रही कि भारत इस पायदान पर अभी पहुंच गया है या दो महीने बाद यानी जून तक पहुंचेगा। मगर बहस इस बात पर होनी चाहिए कि इस जनसंख्या वृद्धि के निहितार्थ क्या हैं। ताजा आंकड़े जारी होने के बाद चीन ने कहा है कि उसके पास अब भी नब्बे करोड़ से अधिक लोगों का गुणवत्ता वाला मानव संसाधन है।

चीन की पीड़ा समझी जा सकती है। दरअसल, जनसंख्या के बल पर ही उसने नब्बे के दशक से आर्थिक तरक्की की है। हालांकि पंद्रह से चौंसठ साल आयुवर्ग की कामकाजी आबादी के मामले में चीन अब भी भारत से आगे है। भारत की अपेक्षा उसके पास इस आयुवर्ग के एक करोड़ लोग अधिक हैं। मगर चौदह साल से कम उम्र की आबादी के मामले में भारत की तुलना में चीन काफी पिछड़ गया है। यानी आने वाली कामकाजी पीढ़ी भारत के पास अधिक होगी। इसी तरह चीन में जीवन की अवधि भारत की अपेक्षा अधिक होने की वजह से उस पर बुजुर्ग आबादी का बोझ अधिक है।

माना जा रहा है कि भारत अपनी आबादी के बल पर विकास के रास्ते पर तेजी से आगे बढ़ेगा। पिछले कुछ सालों में इसकी विकास दर पर इसका असर भी साफ देखा गया है। हालांकि चीन ने अपनी प्रजनन दर पर काफी अंकुश लगाया है। भारत भी इस दिशा में सतर्क है और उसकी प्रजनन दर 2.2 से घट कर 2.0 पर आ गई है। इसलिए वह अनिवार्य परिवार नियोजन जैसी योजना पर कोई कदम नहीं बढ़ा रहा।

हालांकि उसे संसाधनों पर बढ़ते आबादी के दबाव को कम करने में काफी वक्त लगेगा। एक तरफ जलवायु परिवर्तन के चलते खाद्यान्न उत्पादन पर असर देखा जा रहा है, तो दूसरी तरफ रोजगार के मोर्चे पर अपेक्षित कामयाबी नहीं मिल पा रही है। इससे संबंधित तमाम योजनाएं अपने लक्ष्य तक नहीं पहुंच पा रही हैं। ऐसे में विकास दर की रफ्तार कितनी तेज होगी, फिलहाल दावा करना मुश्किल है।

शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराने में सरकार को खासी मशक्कत करनी पड़ती है। आबादी अधिक होने का ही नतीजा है कि इन दोनों क्षेत्रों में सरकार पर्याप्त बजटीय आबंटन नहीं कर पाती। चौदह साल तक की उम्र के सभी बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का कानून होने के बावजूद साठ फीसद से कम ही बच्चे उच्चतर माध्यमिक कक्षाओं तक पहुंच पाते हैं।

ऐसे में कौशल विकास संबंधी योजनाओं की सफलता भी प्रश्नांकित होती रहती है। फिर सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं पर जनसंख्या का अधिक दबाव होने की वजह से गुणवत्तापूर्ण सुविधाएं उपलब्ध कराना चुनौती बना हुआ है। इसके चलते कई तरह की सामाजिक विसंगतियां भी नजर आती हैं। जनसंख्या का दबाव खेती-किसानी, वनभूमि, पर्यावरण पर भी साफ देखा जाता है। खेत का जोत घट रहा है, मकानों के लिए जगह की जरूरत बढ़ रही है, इसके लिए पर्यावरण पर अतिक्रमण भी बढ़ रहा है। इस तरह जो आबादी एक तरफ वरदान नजर आ रही है, वही दूसरी तरफ मुसीबत बन रही है।

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