फैले भ्रष्टाचार का नमूना

बिहार के भागलपुर में गंगा पर बन रहे एक पुल के ढह जाने की घटना ने एक बार फिर यही साबित किया है कि निर्माण कार्यों में फैले व्यापक भ्रष्टाचार और शासन तंत्र में बैठे लोगों की मिलीभगत के बीच ईमानदारी, जिम्मेदारी या संवेदनशीलता जैसी बातों की जगह नहीं है। भागलपुर को खगड़िया जिले से जोड़ने वाली निर्माणाधीन अगुवानी-सुल्तानगंज पुल ढह गया और इस तरह हादसों के सिलसिले में एक और कड़ी जुड़ गई।

साथ ही यह भी उजागर हुआ कि सरकारों और संबंधित महकमों की ओर से किस स्तर की लापरवाही बरती जाती है या भ्रष्टाचार किया जाता है। गौरतलब है कि रविवार को भागलपुर में गंगा पर सत्रह सौ सत्रह करोड़ रुपए से ज्यादा की लागत से बन रहा निर्माणाधीन पुल अचानक ही गिर गया। यही पुल दूसरी ओर से एक बार पहले भी ढह गया था।

इसके बाद भी सरकारी दावे सामने आते रहे कि जल्दी ही इस पुल का निर्माण कार्य पूरा कर जनता के लिए खोल दिया जाएगा। इतने दिनों तक पुल का काम लटका रहा और अब जो हुआ, उसमें सिर्फ संयोग से ही आम लोग चपेट में नहीं आए। वरना जिस पैमाने पर यह पुल गिरा, अगर उस पर वाहनों और लोगों की आवाजाही रहती तो अंजाम की त्रासदी का अंदाजा लगाया जा सकता है।

हैरानी की बात यह है कि पुल के गिरने की घटना जब उसके वीडियो सहित सुर्खियों में आ गई तब सरकार की ओर से यह सफाई आई कि चूंकि इस पुल का डिजाइन गलत था और जोखिम से भरा था, इसलिए इसे गिराया जाना तय था। इसे स्पष्ट किए जाने की जरूरत है कि पुल खुद ढह गया या फिर उसे गिराया गया। दोनों ही स्थितियों में यह तय है पुल के निर्माण में व्यापक खामियां थीं और वह भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गया।

सरकार की ओर से जारी सफाई में कहा गया कि इस पुल के डिजाइन में बड़ी खामी थी। बिहार के उपमुख्यमंत्री के मुताबिक इस पुल की खामियों के मद्देनजर आइआइटी-रुड़की से इसका अध्ययन कराया गया। विशेषज्ञों ने सूचित किया था कि इसमें गंभीर खामियां हैं। सवाल है कि जब सरकार किसी कंपनी को पुल निर्माण की जिम्मेदारी सौंप रही थी, उससे पहले क्या गुणवत्ता की कसौटी पर पूरी निर्माण योजना, डिजाइन, प्रक्रिया, सामग्री और संपूर्णता को सुनिश्चित किया जाना जरूरी समझा गया था?

इतना तय है कि एक ही पुल अगर दो बार भरभरा कर गिरा तो यह डिजाइन गलत होने से लेकर उसमें उपयोग होने वाली सामग्री के घटिया होने का भी साफ संकेत है। लेकिन जिस तरह सरकार उस पुल की गुणवत्ता और जोखिम का अध्ययन करा रही थी, क्या उसके निर्माण के दौरान या उससे पहले डिजाइन सहित उसके हर कसौटी पर बेहतर होने के लिए जांच कराना सुनिश्चित नहीं कर सकती थी?

पुल के गिरने से जितने पैसों की बर्बादी हुई, उसकी भरपाई आखिर किससे कराई जाएगी? बिहार में पुल गिरने की ताजा घटना कोई पहली नहीं है। इससे पहले पिछले साल भर में सात पुलों के ढह जाने की खबरें आईं। पुलों के गिरने के लिए उसे बनाने वाली कंपनी की लापरवाही और भ्रष्टाचार जिम्मेदार है।

लेकिन उच्च मानकों, बेहतर होने की सौ फीसद कसौटियों और गुणवत्ता को सुनिश्चित करने के बजाय किसी खास कंपनी से संबंधित महकमे या उसके अधिकारियों द्वारा गलत तरीके से समझौता करना भी भ्रष्टाचार नहीं है? सरकार को अपने बचाव में दलील देने के बजाय पुलों सहित किसी भी निर्माण कार्य में ऐसे इंतजाम करने चाहिए, जिसमें सौ फीसद गुणवत्ता सुनिश्चित कराई जाए और आम जनता खुद को सुरक्षित महसूस करे।

 

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