कोटा राजस्थान में बसी वह शिक्षा नगरी जहां बच्चे अपने सपनों को उड़ान देने के लिए जाते हैं। उनके ऊपर सिर्फ मंजिल हांसिल करने की धुन सवार होती है। समझ नहीं आ रहा कि इस नगरी में आखिर ऐसी कौन सी आबो हवा है जो वहां जाने के बाद कुछ छात्र सुसाइड करना चुन लेते हैं। वे आखिर अपनी जान क्यों दे देते हैं? जिस सपने को पूरा करने के लिए वे अपनों से दूर जाते हैं आखिर उन अपनों को हमेशा के लिए क्यों छोड़ जाते हैं? जवाब कौन देगा पता नहीं?
इस मामले में शासन-प्रशासन चुप्पी साधे हुए है। कोई ठीक से कुछ बोलने के लिए तैयार नहीं है। हर बार यही कहा जाता है कि परिजनों का छात्र के ऊपर एंट्रेंस एग्जाम पास करने का दबाव था। हर बार यही बहाना क्यों? क्या गला फाड़कर चिल्लाने वाले वे कोचिंग सेंटर जिम्मेदार नहीं है जो एडमिशन लेते ही ये कहते हैं कि हम तुम्हारा भविष्य सुनहरा बना देंगे। क्या राजस्थान सरकार की जवाबदेही नहीं बनती कि शिक्षा की नगरी कोटा में आए दिन बच्चे अपनी जान क्यों दे रहे हैं? ये बात हम यूं ही नहीं कर रहे हैं बल्कि यहां पिछले दो महीनों में 9 छात्रों ने सुसाइड का रास्ता अपनाया है। खैर, किसी को क्या फर्क पड़ता है? ऐसा लगता है कि यहां छात्रों का सुसाइड करना आम बात हो गई है।
अभी हाल ही में 27 जून यानि मंगलवार को दो छात्रों ने अपनी जान दी है। वे एमबीबीएस करना चाहते थे। इसके लिए एंट्रेस एग्जाम की तैयारी कर रहे थे। उनका सपना नीट (NEET) क्लीयर करने का था। अब सवाल तो यह भी बनता है कि क्या इन छात्रों के ऊपर इंस्टिट्यूट या घऱवालों की तरफ से दबाव था?