जिन घरों में मातृभाषा का सम्मान नहीं होता, वहां माता-पिता व बड़े-बुजुर्गों को भी सम्मान नहीं मिलता: जसप्रीत सिंह करमसर

नई दिल्ली

दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के धर्म प्रचार विभागाध्यक्ष जसप्रीत सिंह करमसर ने कहा है कि जिन घरों में मातृभाषा का सम्मान नहीं किया जाता है, वहां माता-पिता और बड़े-बुजुर्गों को भी सम्मान नहीं मिलता।
अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के अवसर पर दुनिया भर के पंजाबियों को बधाई देते हुए सरदार करमसर ने कहा कि मातृभाषा और सौतेली भाषा में उतना ही बड़ा अंतर है जिस प्रकार मां द्वारा बनाए घर के खाने और बाहर के खाने में। जिस तरह बाहर का खाना पेट खराब करता है, उसी तरह सौतेली भाषा हमें अपनों से दूर करती है। हमारी मातृभाषा हमारे मन और शरीर को शीतल रखती है जबकि सामाजिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए सौतेली भाषा सीखनी ही पड़ती है। जिन बच्चों ने अपनी मातृभाषा, पहनावा छोड़ा, वे देश छोड़ रहे हैं, अपनी भाषा में जिस प्रकार की भावना व अहसास प्रतीत होता है वह किसी दूसरी भाषा में नहीं मिलता। जिन घरों में मातृभाषा नहीं बोली जाती, वहां बच्चे अपने माता-पिता को महत्व नहीं देते और ऐसे घरों की व्यवस्था बहुत खराब होती है।उन्होंने माता-पिता से अपने बच्चों को मातृभाषा सिखाने का आग्रह किया और कहा कि रसूल हमजा लिखते हैं कि यदि आप दुनिया की सभी भाषाएं जानते हैं लेकिन आप मातृभाषा नहीं जानते तो यह गुलामी का प्रतीक है।उन्होंने कहा कि बच्चा मां के गर्भ में ही मातृभाषा के एहसास को समझने लगता है और जन्म के बाद मां के एहसास से ही मातृभाषा सीख जाता है। उन्होंने आग्रह करते हुए कहा कि अपनी मातृभाषा से स्वयं व अपने बच्चों को जोड़े रखें नहीं हम अपनी जड़ों से दूर होते चले जाएंगे।

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