मुंबई-अहमदाबाद बुलेट ट्रेन कॉरिडोर गुजरात राज्य में नर्मदा नदी के ऊपर से गुजरेगा। नर्मदा नदी, जिसे “मध्य प्रदेश और गुजरात की जीवन रेखा” कहा जाता है, मध्य भारत से होकर बहती है। सांस्कृतिक और भौगोलिक दोनों ही दृष्टि से इसका बहुत महत्व है। यह नदी जल संसाधनों, कृषि, पेयजल और जलविद्युत के लिए महत्वपूर्ण है। आध्यात्मिकता, इतिहास और आर्थिक महत्व के मिश्रण के साथ, नर्मदा नदी लाखों लोगों के जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
भारत का तीसरा सबसे ऊंचा कंक्रीट बांध- सरदार सरोवर बांध भी इसी नदी पर है जिसकी लंबाई 1210 मीटर (3970 फीट) है और बांध की अधिकतम ऊंचाई सबसे गहरी नींव के स्तर से 163 मीटर है।गुजरात के भरूच जिले में बुलेट ट्रेन परियोजना के लिए नर्मदा नदी पर 1.4 किलोमीटर लंबा पुल निर्माणाधीन है (सूरत और भरूच बुलेट ट्रेन स्टेशनों के बीच)। यह परियोजना के गुजरात हिस्से में सबसे लंबा नदी पुल है।
पुल का निर्माण वेल फाउंडेशन पर किया जा रहा है। वेल फाउंडेशन एक प्रकार की गहरी नींव है जो नदियों में स्थित होती है और जिसका उपयोग पुलों जैसी भारी संरचनाओं को सपोर्ट देने के लिए किया जाता है। इसमें एक खोखली, सिलिण्डरीकाल संरचना होती है जो स्थिरता और भार वहन क्षमता प्रदान करने के लिए वांछित गहराई तक जमीन में धंसी होती है। वेल फाउंडेशन रेलवे, राजमार्गों, चौड़ी नदियों पर पुलों/वायडक्टों के लिए सबसे पुराने और सबसे प्रभावी नींव प्रकारों में से एक है। इस विधि का उपयोग अक्सर गहरे और अस्थिर नदी तल वाले क्षेत्रों में किया जाता है जहां अन्य प्रकार की नींव संभव नहीं है।
नर्मदा एचएसआर पुल में 25 वेल फाउंडेशन है। 5 वेल की गहराई 70 मीटर से अधिक है तथा सबसे गहरी वेल फाउंडेशन (वेल कैप के ऊपर से लेकर वेल फाउंडेशन स्तर तक) 77.11 मीटर है। नदी में अन्य वेल फाउंडेशन की गहराई लगभग 60 मीटर है। 4 वेल फाउंडेशन की गहराई कुतुब मीनार की ऊंचाई (Inverted/उल्टी) से भी अधिक होगी, जो भारत की सबसे ऊंची संरचनाओं में से एक है (कुतुब मीनार की ऊंचाई 72.5 मीटर है, स्रोत: दिल्ली पर्यटन)।
वेल फाउंडेशन संरचनाओं से जुड़ी प्रमुख चुनौती लंबी अवधि की सिंकिंग (sinking) प्रक्रिया के दौरान वेल का “टिल्ट” और “शिफ्ट” है, जो ज्वार की लहरों, उच्च नदी प्रवाह और डूबने वाले स्तर पर मिट्टी की स्थिति जैसी प्राकृतिक शक्तियों के कारण होता है।
सितंबर 2023 में मानसून और बाढ़ की स्थिति के कारण विशाल नर्मदा नदी पर पुल का निर्माण प्रतिकूल रूप से प्रभावित हुआ। सरदार सरोवर बांध से बड़ी मात्रा में पानी (लगभग 18 लाख क्यूसेक) छोड़ा गया, जिसके परिणामस्वरूप निर्माण की सुविधा के लिए अस्थायी लोहे का पुल क्षतिग्रस्त हो गया, साइट पर मौजूद भारी क्रेन में खराबी आ गईं, जिससे कार्य-क्षेत्र दुर्गम हो गए और विद्युत संपर्क बाधित हो गया।
इन चुनौतियों के बावजूद, साइट इंजीनियरों ने परिचालन को बहाल करने के लिए दिन-रात अथक परिश्रम किया। वेल की खुदाई की निरंतर निगरानी के लिए अतिरिक्त टीमों को तैनात किया गया। जैक-डाउन पद्धति के उपयोग से “टिल्ट” और “शिफ्ट” की समस्याओं को समय रहते सुलझा लिया गया।
सावधानीपूर्वक योजना और ऑन-साइट टीम के साथ, पुल के काम ने 25 वेल में से 19 वेल फाउंडेशन को पूरा करने के साथ उल्लेखनीय प्रगति हासिल की है। सुपरस्ट्रक्चर के निर्माण का काम भी शुरू हो गया है।
पुल की मुख्य विशेषताएं:
कुल स्पैन: 24 (21X60 मी. + 2X36 मी. + 1X35 मी.)
वेल फाउंडेशन की संख्या और आकार: 25 (10 मी. व्यास और 60 मी. से अधिक गहराई)
पियर्स की कुल संख्या: 25 गोलाकार पियर्स (5 मी. और 4 मी. व्यास)
पियर्स की ऊँचाई: 14 मी. से 18 मी.
अधिरचना का प्रकार: पोस्ट-टेंशन बॉक्स गर्डर (एसबीएस प्रकार)
परियोजना में कुल 24 नदी पुल हैं, जिनमें से 20 गुजरात में और 4 महाराष्ट्र में हैं। गुजरात में नदियों पर 20 पुलों में से दस (10) पूरे हो चुके हैं: पार (320 मीटर) वलसाड जिला, पूर्णा (360 मीटर) नवसारी जिला, मिंधोला (240 मीटर) नवसारी जिला, अंबिका (200 मीटर) नवसारी जिला, औरंगा (320 मीटर) वलसाड जिला, वेंगानिया (200 मीटर) नवसारी जिला, मोहर (160 मीटर) खेड़ा जिला, धाधर (120 मीटर) वडोदरा जिला, कोलक नदी (160 मीटर) वलसाड जिला और वात्रक (280 मीटर), खेड़ा जिला।