लोकसभा चुनाव अगले साल होने जा रहे हैं, उस बड़े मुकाबले से पहले पार्टियों के सामने कर्नाटक चुनाव के रूप में एक सेमीफाइनल मैच खड़ा है जिसमें दोनों कांग्रेस और बीजेपी ने अपना एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया है। ये चुनाव कांग्रेस के लिए तो और ज्यादा जरूरी हो जाता है क्योंकि लगातार मिल रहीं चुनावी हारों के बीच पार्टी को भी लोकसभा फाइनल से पहले एक बड़े सियासी बूस्टर की जरूरत है। कर्नाटक चुनाव की जीत पार्टी के लिए वो खाका तैयार कर सकती है। अब ऐसा हो भी सकता है, लेकिन इसके लिए कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे का सियासी रूप से चलना जरूरी है। कर्नाटक उनका गृह राज्य है, वे दलित नेता हैं, ऐसे में पार्टी को चुनावी मौसम में वे किस कदर फायदा पहुंचा सकते हैं, ये जरूरी रहेगा।
असल में कर्नाटक चुनाव मल्लिकार्जुन खड़गे के लिए साख की लड़ाई है, वे कांग्रेस के अध्यक्ष तो बन गए हैं, लेकिन सियासी रूप से खुद को स्थापित करना अभी बाकी है। इस समय कांग्रेस हाईकमान का मतलब पार्टी में गांधी परिवार ही रहता है। अध्यक्ष चाहे खड़गे क्यों ना बन जाएं, लेकिन कई फैसलों में गांधी परिवार की सक्रियता अहम मानी जाती है। इसका बड़ा कारण ये है कि कई कांग्रेस कार्यकर्ताओं के लिए आज भी गांधी परिवार ही सबकुछ है, ऐसे में किसी दूसरे नेता को निखरने का वो मौका नहीं मिलता। अब जो मौका दूसरों को नहीं मिला, मल्लिकार्जुन खड़गे के पास वो बतौर कर्नाटक चुनाव आया है। इस समय कर्नाटक में कांग्रेस सत्ता वापसी की कोशिश में लगी हुई है और उस कोशिश में दलित वोटों का पार्टी के साथ जुड़ना जरूरी है।
कर्नाटक की दलित पॉलिटिक्स और खड़गे की अहमियत
कर्नाटक में 19.5 फीसदी दलित वोट है, जिसमें पिछले कुछ सालों में बीजेपी ने जबरदस्त सेंधमारी की है। ऐसे में मल्लिकार्जुन खड़गे के जरिए पार्टी फिर उस वोटर को अपने पाले में ला सकती है। खड़गे कहने को राज्य के एक बार भी मुख्यमंत्री नहीं बन पाए, लेकिन लगातार 9 बार वे गुलबर्गा से विधायक रहे, उनकी लगातार हुई उस जीत ने ही ये साबित कर दिया था कि जमीन पर इस कांग्रेस नेता का नेटवर्क बहुत सॉलिड है, जनता के बीच उसकी लोकप्रियता है और समीकरण साधना उसे बखूबी आता है। कांग्रेस भी ये बात समझती है, उसका सिकुड़ता जा रहा दलित वोटबैंक फिर खड़गे के जरिए उसकी झोली में आ सकता है। वैसे भी मल्लिकार्जुन खड़गे दक्षिणपंथ दलित हैं, यानी कि वे राइट विंग से ताल्लुक रखते हैं। जैसी कर्नाटक की सियासत रही है, यहां पर दलितों की राइट बनाम लेफ्ट वाली एक सियासी जंग अलग चलती रहती है। अब अगर इस सियासी जंग को पाटकर कांग्रेस एकमुश्त तरीके से दलितों को अपने पाले में ले आए तो सत्ता में उसकी वापसी की संभावना ज्यादा बन जाती है।