गोबर और गुलाब

सतीश उपाध्याय
कभी निराला ,‌ने अपनी कविता “अबे सुन बे गुलाब ” के माध्यम से सामंतवादी व्यवस्था पर तीखा प्रहार किया था । गुलाब को फटकार  भी लगाया था कि-अबे सुन गुलाब  तू तो हमेशा शाह  ,राजाओं, अमीरों का ही प्यारा रहा है। ” राष्ट्रीय महाधिवेशन में इस बार उसी गुलाब  और उसकी पंखुड़ियों की याद आ गई जो सैंडल और जूते के नीचे रौंदा गया। फूल तो खिलते ही हैं बिखरने के लिए ।क्या हुआ जो  महाधिवेशन  में उसने अपने कुर्बानी दे दी।गुलाब की धज्जियां उधेड़ दी गई याने  उनकी पंखुड़ियों को नोच कर, पंखुड़ियों की कालीन बनाई गई।  सोचता हूं नर्म ताजे फूलों को कुचलते हुए उन्हें कितना  सुकून मिला होगा ।  प्राकृतिक कोमलता का एहसास हुआ होगा । प्रदेश में संपन्न महाधिवेशन में गुलाब की पंखुड़ियां से पूरी पार्टी का गजब का स्वागत हुआ। वैसे जिस प्रदेश में पार्टी का राष्ट्रीय महाधिवेशन हुआ वह देश में एकलौता राज्य है जो गोबर खरीदी के लिए पहचाना जाता है।

 ऐसे समय गोबर  तो गोबर ही रह गया। गुलाब महिमामंडित  हो गया। सुर्ख गुलाब छा गया।गोबर ,गोबर ही रह गया। यदि उनके स्वागत में बिछाई गई पंखुड़ियों की जगह 2 किलोमीटर गोबर की लिपाई कर दी जाती सैकड़ों गुलाब अपनी पूरी जिंदगी तो जी ही लेते पर ऐसा हो नहीं सका। गोबर वाला राज्य महात्मा गांधी के सपनों को पुष्पित और पल्लवित कर रहा है यह संदेश भी पूरे हिंदुस्तान में जाता ,पर गोबर तो गोबर ही होता है।
वर्ल्ड रिकॉर्ड की टीम को इस पर भी शोध करना चाहिए कि कहीं हिंदुस्तान का छत्तीसगढ़ बाजी न मार ले गया हो । मेरे ख्याल से 6000 किलोग्राम से अधिक गुलाब की  पंखुड़ियों वाली  हसीन सड़क बनाने वाला भी हिंदुस्तान का पहला राज्य छत्तीसगढ़ हो गया हो यह हसीन प्रयोग सबको खूब भाया।निश्चित रूप से  मोहब्बत बांटने वाली पूरी राजनीतिक बिरादरी इस प्रकार के भव्य स्वागत को देखकर अभिभूत हो गई होंगी ।वे भले ही सुकोमल गुलाब से खेलें,लेकिन कांटे चुभाने आने वाले अपनी  आदत से बाज कहां आने वाले ?वह कांटे चुभाएंगे ही -बदजुबानी के कांटे। वे गुलाब को भी  मोहब्बत नहीं ,नफरत सिखाने का गुण रखते हैं।गुलाब का भाव ,मन पवित्र होता है और उद्देश्य, लोक कल्याण का  होता है।उन्होंने गुलाब की पंखुड़ियां बिछाकर अपने इसी उद्देश्य को देश के सामने ले आया तो क्या गुनाह किया ? उनके पार्टी भले ही किसी की भी कब्र खोदे, पर उनका मन पवित्र है लोक कल्याण की भावना है । वे असत्य नहीं बोलते और कभी असत्य बोलते भी हैं तो उसके पीछे असत्य बोलने का कारण लोक कल्याण की भावना ही होती है । उनका असत्य भी पुण्य की संज्ञा में ही रखा जाता है गुलाब भी मोहब्बत बांटता है ,मोहब्बत बढ़ाता है ।वे भी मोहब्बत बांट रहे और यदि आपको पैरों के तले कुचले गुलाब की पंखुड़ियों में मोहब्बत नहीं दिखती तो इसमें आपकी वैचारिकता  का दोष है । तब आप यह मूल्यांकन कर लीजिए कि आपका अपना मूल्य ही आपसे विपरीत आचरण रख रहा है। उनकी पूरी पार्टी ही गुलाब की पंखुड़ियां नोच कर कांटे को ,हाथ में लिए इन दिनों घूम रही है ।
बढ़ते हुए वक्त के साथ अब गुलाब के कांटे बबूल के कांटो में बदल चुके हैं -ये बदजुबानी के कांटे है। जिसमें कब्र खुदेगी,, चाय वाला, यमराज ,भस्मासुर कातिल ,बंदर ,चूहा ,गंदी नाली का कीड़ा ,जमीन में गाड़ देंगे, अनपढ़ , गंवार, हिटलर, नीच आदमी , चौकीदार चोर है ,,के जुमले का जख्म  टंगा  हुआ है। गुलाब के फूल दिखला कर , बबूल के तीखे कांटे चुभाने वालों की पूरी टोली  विश्वास की पात्र हैं । मुझको तो अब लगने लगा है कि  गांधी जी  की पोषित यह पार्टी ,निरंतर आगे बढ़ती रहेगी, बढ़ती रहेगी ।
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