अलगाव की आग

करीब बारह दिन पहले वह चकमा देकर पुलिस की घेराबंदी से भाग निकला था और अभी तक भेष बदल कर छिपा फिर रहा है। मगर दो दिन पहले उसने एक वीडियो जारी कर जिस तरह अपने ऊपर पुलिस कार्रवाई को पूरे सिख समुदाय पर हमला बताया और बैसाखी पर ‘सरबत खालसा’ की बैठक बुलाने का आह्वान किया है, उससे जाहिर है कि उसके मंसूबे कमजोर नहीं हुए हैं।

उसने वीडियो में कहा भी है कि ‘मैं पूरे जोश में हूं, मुझे कोई नुकसान नहीं पहुंचा सकता’। इस वीडियो के आने के बाद पुलिस एक बार फिर सक्रिय हो गई है। कयास लगाए जा रहे हैं कि वह आत्मसमर्पण कर सकता है। मगर उसके वीडियो संदेश से लगता नहीं कि वह आसानी से काबू में आने वाला है। उसने पुलिस कार्रवाई को सिख समुदाय पर हमला बता कर वही खेल खेलने की कोशिश की है, जो भिंडरांवाले ने खेला था।

अमृतपाल उसी रणनीति के तहत शुरू से गुरुग्रंथ साहब को आगे करके चलता रहा है। मगर सच्चाई यह है कि उसे कुछ दिग्भ्रिमत लोगों का समर्थन तो जरूर मिला, मगर पूरे सिख समुदाय का समर्थन हासिल नहीं हो सका। वह हो भी नहीं सकता, यह बात वह अच्छी तरह जानता है। इसीलिए वह लोगों का भावनात्मक दोहन करने का प्रयास कर रहा है।

मगर यह सवाल अभी तक अनुत्तरित है कि अमृतपाल पुलिस घेरे के बीच से भागने में कामयाब कैसे हो गया। फिर वह इतने दिनों तक बचता कैसे फिर रहा है। पुलिस के पास इतने अत्याधुनिक सूचना उपकरण हैं, वह उसकी टोह लेने में कैसे विफल साबित हो रही है। कभी कहीं उसकी तस्वीर देखी जाती है तो कभी दूसरी जगह।

पुलिस इस बात से अनजान नहीं मानी जा सकती कि जब तक वह उसकी चंगुल से बाहर रहेगा, उसके उपद्रव मचाने की आशंका भी बनी रहेगी। सवाल यह भी है कि जब अजनाला थाने पर उसने अपने हथियारबंद समर्थकों के साथ हमला कर अपने एक साथी को छुड़ा था, तभी पुलिस ने उसके खिलाफ सख्ती क्यों नहीं बरती। वह कई दिनों तक खुलेआम साक्षात्कार और भड़काऊ बयान देता रहा। देश की सरकार को चुनौती देता रहा। इस ढिलाई की वजह से पंजाब सरकार पर स्वाभाविक ही अंगुलियां उठती रहीं। जब केंद्र के सहयोग से कार्रवाई शुरू भी हुई, तो वह लचर ही साबित हुई।

पंजाब सीमावर्ती राज्य है और वहां आतंकी गतिविधियों के पैर पसारने की आशंका सदा बनी रहती है। यह भी बात छिपी नहीं है कि खालिस्तान का झंडा उठाए उपद्रवियों को सीमा पार से समर्थन हासिल है। ऐसे में अमृतपाल जैसे अलगाववादियों के खिलाफ किसी भी तरह की लापरवाही एक तरह से सुरक्षा व्यवस्था पर सवालिया निशान लगाती है।

अगर समय रहते अमृतपाल पर शिकंजा कस लिया गया होता या उसे बातचीत के जरिए शांत करने का प्रयास किया गया होता, तो वह आज इस तरह फरारी में भी भड़काऊ वीडियो जारी न करता। पंजाब पहले ही अलगाववाद की आग में झुलस चुका है। हालांकि पंजाब के आम नागरिक कभी नहीं चाहते कि उन्हें अलग किया जाए, मगर कुछ गुमराह लोगों की वजह से उन्हें अशांति झेलनी पड़ती है। एक गणतांत्रिक देश में किसी भी तरह की अलगाववादी गतिविधियों को सिर उठाने की स्थिति नहीं होनी चाहिए। अमृतपाल को पकड़ने में पुलिस की विफलता उसके हौसले बढ़ाने में ही मदद करेगी।