सरकार ने फिर साबित किया यूपी में है कानून का राज , न अतीक गाड़ी पलटी और न ही मुख्तार की

  • सरकार के प्रति बढ़ा लोगों का विश्वास
  • सत्ता के लिए माफियाओं को बैसाखी बनाने से विपक्षी दलों को करना होगा परहेज
  • उत्तर प्रदेश में 1980 से 2000 के बीच उभरे माफिया जी चुके हैं अपनी उम्र
अनुपम सिंहवरिष्ठ पत्रकार
अनुपम सिंह
वरिष्ठ पत्रकार

उत्तर प्रदेश की राजनीत और सरकार में रूचि रखने वाले लोगों को 1980 से वर्ष 2000 का वह दौर भी याद होगा, जब राजनीति करने और सरकार बनाने वालों के लिए माफिया अहम मोहरे हुआ करते थे। दिवंगत मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने एक बार एक माफिया के साथ मंच साझा किया तो लोगों ने सवाल उठाये तो मुलायम सिंह ने झल्ला कर जवाब दिया,मुकदमा दर्ज होने से कोई बदमाश नहीं हो जाता है। मुकदमा तो उनके ऊपर भी है। इसका जिक्र हम इसलिये कर रहे हैं। उन दिनों चुनाव जीतने के लिए धनबल से ज्यादा बाहुबल की जरूरत पड़ती थी। नेता इस बात को अच्छी तरह से समझते थे। इसलिए वह बदमाशों को प्रश्रय देते थे। बदमाश इन नेताओं के लिए बूथों पर कब्जा करते थे। बैलेट बॉक्स लूटते थे। बैलेट पेपर पर जबरिया मुहर लगाते थे। बदले में नेता सरकार बनने पर इन माफियाओं के मुकदमे वापस लेते थे। जांच में धारायें निकलवाते थे और ठेका-पट्टा देकर उपकृत करते थे। इसी की नतीजा रहा इस दौर में बाहुबल से नेता बने हरिशंकर तिवारी,अतीक अहमद,मुख्तार अंसारी, डीपी यादव,विजय मिश्रा,अमरमणि त्रिपाठी,विकास दुबे वह नाम है,जो सत्ता के गलियारे तक पहुंचे। इनमे से अधिकांश अपनी उम्र जी कर 60 के आस-पास पहुंच चुके हैं। उनके बेटे अच्छे स्कूल-कालेजों से पढ़ लिखकर हाईटेक हो चुके हैं,जो 5जी की दुनिया को समझते हैं,राजनीत करना चाहते हैं। मगर अपने बाप की राह पर चलकर गैंग्स ऑफ वासेपुर की तरह आगे निकलने का माद्दा नहीं रखते हैं। वहीं उत्तर प्रदेश में अब डबल इंजन वाली सरकार ने अपनी राजनैतिक रणनीत से राजनीत करने और जनता के दिलों पर राज करने के तौर-तरीकों को बदलकर रख दिया है। यही वजह रही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जब सदन में शेर की मानिंद दहाड़ते हुए कहा कि यूपी के माफियों को वह मिट्टी मिलाने का काम करेंगे,तो समाजवादी पार्टी से लेकर सभी राजनैतिक दलों ने मेज थपथपा कर अपना समर्थन दिया,लिहाजा विपक्षी दलों के भी यह समझ में आ गया है, अब सत्ता में आने के लिए माफियाओं का सहारा लेने की बात उलटी पड़ सकती है, क्योंकि बीजेपी के सत्ता में आने से पहले उत्तर प्रदेश में कानून-व्यवस्था की स्थिति किसी से छिपी नहीं है। गोरखपुर मठ के महंथ योगी आदित्यनाथ जब पहली बार मुख्यमंत्री बने तब उन्होंने सबसे पहले कानून-व्यवस्था को दुरुस्त करने की ठानी और थानाधिकारियों व पुलिस के अफसरों को खुलकर काम करने का अवसर दिया। इस बीच कानपुर में बिकरू कांड हो गया और राजनैतिक पार्टियों के संरक्षण में माफिया से नेता बने विकास दुबे ने सीओ समेत आठ पुलिस कर्मियों को मौत के घाट उतार दिया। आग की तरह फैली इस खबर से सत्ताधारी बीजेपी सरकार हिल गई। मुख्यमंत्री योगी कई रात सो नहीं सके। मगर कई दिनों की सघन तलाशी के बाद जब राहत भरी खबर आई। आठ पुलिस कर्मियों के हत्यारे माफिया विकास दुबे की गाड़ी पलट गई और वह यूपी एसटीएफ के हाथों मारा गया। तब मुख्यमंत्री योगी ने राहत की सांस ली। इसके बाद जब पंजाब की जेल में बंद माफिया डॉन मुख्तार अंसारी को उत्तर-प्रदेश लाया जा रहा था। तब उसे गाड़ी पलटने का भय सताने लगा। इसी तरह हाल ही में गुजरात के साबरमती जेल में बंद माफिया डान अतीक अहमद को जब प्रयागराज स्थित एमपीएमएलए कोर्ट में सजा की सुनवाई के लिए लाया जा रहा था तो रास्ते में उसकी गाड़ी से कोई मवेशी टकरा गया। इसके बाद तो अतीक अहमद एनकाउंटर के भय से डर गया। मगर माफिया डॉन मुख्तार और अतीक दोनों मामलों में उत्तर प्रदेश सरकार ने यह साबित किया। उत्तर प्रदेश में सिर्फ और सिर्फ कानून का राज है। एमपीएमएलए कोर्ट ने माफिया अतीक को आजीवन कारावास की सजा सुनाई। इससे लोगों का योगी के प्रति विश्वास बढ़ा है। वहीं माफियाओं को बैसाखी बनाकर सत्ता हासिल करने का स्वप्न देखने वाले विपक्षी दलों को भी राजनीत का तरीका बदलना होगा और जनता का विश्वास जीतना होगा।

 

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