बदलते रिश्तों से देश की बदलती तस्वीर

रविंद्र कुमारसंयुक्त निदेशक (विपणन) पेट्रोलियम योजना एवं विश्लेषण प्रकोष्ठ पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय
रविंद्र कुमार संयुक्त निदेशक (विपणन) पेट्रोलियम योजना एवं विश्लेषण प्रकोष्ठ पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय

माना कि आज का दौर २१वी सदी का है जो नई तकनीकी नये विज्ञानिक अविष्कार, नए बिजनेश एवं नई सोच से हर उस चीज को आसान बना दिया है जिसका हमारे पहले की पीड़ियों के लोग सपने देखा करते थे I पर इस तरक्की के साथ-२ हमारे समाज के लोग वर्तमान में रिश्तों की गरिमा उनकी अहमियत खोते जा रहे है जिसका कुप्रभाव बड़ी आसानी से अपने आस-पास ही सामजिक स्थलों, कार्यक्रमों में देखा जा सकता है I

वैसे तो भारत देश अपनी सवगुण सम्पनं, अचल सम्प्रदा, विशिष्ट कल्चर एवं अटूट रिश्तों के लिए पूरी दुनिया भर में वेशुमार है परन्तु ये रिश्ते अपना बजूद खोते जा रहे है चाहे रिश्ता माता-पिता व बच्चों के बीच हो या पति -पत्नी, सास-बहू, भाई-भाई, मामा, फूफा, भाई-बहन इत्यादि इसके पीछे अनेक कारण हो सकते है I

आज का दौर शानदार शताब्दी का है जिसमे हर एक मा-बाप अपने बच्चों को उच्च श्रेणी की शिक्षा देना चाहते हैं विदेशो में डालना चाहते हैं जो उन्हें नहीं मिला वो सब देने की पूरी कोशिश करते रहते है हालाँकि व्यक्ति को जीवन में संतुष्ट होना बहुत जरूरी है क्योंकि आज के दौर में ज्यादातर लोग किसी न किसी स्टेज पर संतुष्ट नहीं है कुछ लोग ऑफिस के कमकाज से तो कुछ लोग दूसरों की तरक्की से एवं कुछ लोग घरेलु परिस्थितियों में अपने रिश्तों से ना खुश हैं क्योंकि बच्चे उनकी सुनते नहीं और पडोसी, रिश्तेदारो से तुलना करना I वही दूसरी तरफ बच्चे नए दौर के माहोल में अपने स्टेटस को हाई-फाई बनाने, दिखावा करने में मां-बाप के तौरे-तरीके बदलने को टोकने फिरते हैं कि अपने मेरे लिए कुछ नहीं किया (पढ़ाया-लिखाया नहीं, बिजनेस नहीं करने दिया, स्पोर्ट्स, सिंगिंग वगैरह में सपोर्ट नहीं किया इत्यादि) ये नहीं दिलाया वो नहीं किया अनेक शिकायतों की बजह से ज्यादतर लोग एक दूसरे से संतुष्ट नहीं है और वर्तमान में खुश होने के बजाए भविष्य की चिंता में डूबे रहते है जिसका असर उनके स्वस्थ, जीवन शैली और रिश्तेनातों पर पड़ता है इस तरह के उदाहरण समाज में अपने चारो तरफ देखने को मिल जाएंगे। जिसेसे प्रतीत होता है कि अधिकतर लोग संतुष्ट नहीं है।

और छोटी-२ बातों की बजह से इतने अहम् रिश्तों में दरार आना, रोज के कलेश होने के कारण तनाव से मानसिक, शारीरिक संतुलन बिगड़ता जा रहा है और फिर जब व्यक्ति घर और अपने कामकाज के बीच संतुलन नहीं बना पाता तो फिर उसका प्रभाव दुसरे जगह जैसे यदि वह व्यक्ति नौकरी पेशे वाला है तो उसके दफतर में भी तनाव का माहोल बनने लगता है विना बजह के गुस्सा होना, बॉस अपने नीचे वाले कर्मचारी के ऊपर अपनी भड़ास निकलता है फिर वो और नीचे वाले कर्मचारी अन्तता चपरासी और फिर ऑफिस से जाने के बाद इन सबके घरों में भी तनाव का माहोल बनने और फिर आपसी झगड़ों से पूरा संतुलन विगड जाता है इनमे ज्यादातर झगड़ों के पीछे झांक कर देखोगे तो खुद ही सोचने लगेंगे की हम इन चीजों पर वेबजह लड़ रहे थे पर जब तक ये समझ पाते बहुत देर हो चुकी होती है और कई रिश्ते तो हमेशा के लिए ख़त्म हो जाते या फिर उनमे पहले जैसी बात नहीं रहती I इन सभी बातों को अगर एक शब्द में कहूँ जो सबसे अहम् है  जीवन में ‘संतुष्ट’ होना I

मेरी नजर में जिंदगी जीने का दूसरा पहलू ये भी हो सकता है जैसा कि हम सभी जानते हैं कि हर एक इंसान ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ रचना में से एक है सभी के अंदर अपार खूबियां हैं पर उनको तलाशना हमको ही है तो हम सबको क्यों किसी से तुलना करके ऊंचा या बेहतर दिखाने की जरूरत होनी चाहिए।

छोटी-२ चीजों में खुशियाँ घूघना और अपने छोटे-२ लक्ष्यों को हासिल करके फिर नय लक्ष्य बनाना ऐसा करने से आप ऊर्जावान, आत्मविश्वास से भरपूर्ण व्यक्तित्व पा सकते है और लोगों से सिकायत करना छोड़ दे कम से कम घर पर तो आपसी झगड़ों को ख़त्म करके उन्हें किस तरह वेहतर बनाना है उसके लिए प्रयास करें I देखिएगा जिंदगी कितनी बदल जाएगी ।

हमेशा जो जीता वहीं सिकंदर नहीं होता क्योंकि जिंदगी में जीतना हर वार जरूरी नहीं होता खासकर जब लड़ाई (झगडे) अपनो से हो तो हार मनना भी किसी जीत से कम नहीं होता ।

 

रिश्तों को दोबारा समझने का वक्त आया है
आपसी रंजिसो को छोड़कर, खुश रहने का दौर आया है

इन्तजार की घडी ख़त्म होने का वक्त आया है
एक-दूसरे से मिलने-मिलाने का दौर आया है

कुछ करनी होगी प्यार की बाते, फिर शुरू होंगी घर सवारने की बाते
अगर सम्मान पाना है, तो खुद से ज्यादा दूसरों का सम्मान करना होगा

हर पल को सुहाना बनाना होगा, एक-दूसरे के खातिर बहुत कुछ करना होगा
जिंदगी के लम्बे सफ़र में, एक -दूजे का साथ निभाना होगा

जब भी रूठेगा कोई, दूसरे को मनाना होगा
जबकभी होंगे ऑफिस से लेट, इंतजार की मिर्ची पर मक्खन लगाना होगा

 

जितनी जल्दी ये बात समझ जायेंगे उस दिन से हर-एक घर, समाज की तरक्की की रफ़्तार कई गुना बढ जाएगी और जब हरेक घर, समाज तरक्की करेगा तो देश की तरक्की अपने आप हो जाएगी और भारत देश को विकसित राष्ट्र बनने तक का सफ़र भी जल्दी हासिल हो जायेगा ।

हर एक नागरिक की है ये जिम्मेदारी, राष्ट्र निर्माण में हो सभी की भागीदारी ।

 

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