जम्मू और कश्मीर में चलेगी Vande Bharat Express

भारतीय रेलवे केंद्रशासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर को देश के अन्य हिस्सों से जोड़ने के लिए मिशन मोड पर काम कर रहा है। इस मिशन के मुताबिक, घाटी में वंदे भारत एक्सप्रेस शुरू करने की घोषणा बहुत अहम है। पिछले महीने घाटी की यात्रा के दौरान, रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने उधमपुर-श्रीनगर-बारामूला रेल मार्ग पर देश की पहली स्वदेशी सेमी-हाई स्पीड ट्रेन के संचालन की घोषणा की थी। ट्रेन इस साल के आखिर तक शुरू होने की संभावना है।

Engineers जोरों-शोरों से कर रहे काम-

इसके लिए USBRL प्रोजेक्ट के काम को पूरा करने के लिए Engineers जोरों-शोरों से काम कर रहे हैं। ये रेल मार्ग पूरे साल और पर मौसम में चलेगा। यह जम्मू-श्रीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग (National Highway) का ऑपशन भी प्रदान करेगा। भूस्खलन के कारण अक्सर Highway बंद हो जाता है।

1897 में पहली रेलवे लाइन-

अंग्रेजों द्वारा 1897 में  40-45 किमी की दूरी पर पहली रेलवे लाइन घाटी में बनाई गई थी, ये जम्मू को सियालकोट से जोड़ती है। बाद में 1902 और 1905 में रावलपिंडी से श्रीनगर तक रेल लाइन बनाने का प्रस्ताव रखा गया था, लेकिन से प्रोजेक्ट कभी आगे नहीं बढ़ पाया।

स्वतंत्रता के बाद-

स्वतंत्रता के बाद, सियालकोट पाकिस्तान चला गया और इसी कारण घाटी में कोई रेल नेटवर्क नहीं था। 1975 में पठानकोट-जम्मू रेल लाइन खोली गई, जानकारी के मुताबिक, 1983 में जम्मू और उधमपुर के बीच 53 किलोमीटर लंबी रेलवे लाइन का निर्माण कार्य 50 करोड़ रुपये की लागत से शुरू हुआ था। ये प्रोजेक्ट पांच साल में पूरा किया जाना था, लेकिन कई कारणों से इसमें देरी हुई और दो दशक से भी ज्यादा समय लग गया। आखिरकार इसे 515 करोड़ रुपये की लागत से पूरा किया गया। जम्मू-उधमपुर रेल प्रोजेक्ट में 20  Tunnel और 158 पुल हैं।

1994 में-

बाद में 1994 में, प्रधान मंत्री PV नरसिम्हा राव के नेतृत्व वाली सरकार ने उधमपुर-श्रीनगर-बारामूला (USBRL) को जोड़ने वाली लाइन के विस्तार की घोषणा की। इसे 1995 में 2,500 करोड़ रुपये की लागत से मंजूरी मिली थी। लेकिन इसे प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल के दौरान गति मिली।

यात्रा का समय 3.5 घंटे कम-

श्रीनगर और जम्मू के बीच वंदे भारत एक्सप्रेस शुरू होने से यात्रा का समय 3.5 घंटे कम हो जाएगा। वर्तमान में, दोनों शहरों के बीच सड़क से यात्रा करने में 5-6 घंटे लगते हैं। रेल प्रोजेक्ट का काम यहां के अस्थिर पहाड़ी इलाके के कारण सबसे कठिन कार्यों में से एक है। ये इलाका मुश्किलों से भरा है और सर्दियों में यहां भारी बर्फबारी देखी जाती है।