नियंत्रण कर्ता पत्नियां ..!

दिनेश गंगराड़े

पति,पत्नी के लिए तब तक परमेश्वर है जब तक वो बीवी के हुकुम की तामील करें,फरमाइशें पूरी करें तभी वो प्राणनाथ है।यदि वो पत्नी की मांग आपूर्ति न करें तो नागनाथ?जीवन के अंत मे वो जिम्मेदारी ढोता हुआ ‘अनाथ’ नजर आता है।जहां कतई तालमेल नही वहां,खसम सांपनाथ लगता है?वैसे पत्नी वो जो पति को ‘पत’ नी करें,उसकी पत(इज्जत) नी धरें!

पतनी(?) जब गुस्से में लाल-पीली रहे तो बेचारा भारतीय पति हरा, इकहरा हो जाता है!क्रोध में तमतमाई बीवी जब फटकार लगाती है तो निः सहाय,अबला पति उसका करता है सत्कार,घर मे मचती है हा हा कार, गूंजती है चीत्कार,अंत मे सब बेकार!पत्नी रूपी “सरकार” की होती जय जय कार,समझौंते को नमस्कार?मियां-बीवी का झगड़ा ओंकार की तरह व्यापक, निराकार होता है किंतु फिर भी गृहस्थी अक्सर साकार होती है?यही है भारतीय दाम्पत्य जीवन का चमत्कार?इसमेंखट्टे-मीठे कड़वे अनुभव मिलते है!इन युद्धों में अक्सर युद्ध विराम तो होता हैं पर जहां बेदर्द हाकिम हो वहां मरहम लगाने में ज्यादा वक्त जाया होता है।स्थिति नियंत्रण में किंतु ‘खतरे से बाहर’कुछ दिनों बाद होती है?इसीलिए इसे कविगण “वर्ल्डवार” कहते हैं।धारा144 तो एकाध सप्ताह लगी होती है फिर भी छुट पुट ‘वारदात’घटने का अंदेशा बना रहता है?कुछ वीरांगनाएं कभी-कभी कर्फ्यू की सी स्थिति कायम कर देती हैं लेकिन कई दफा बुजुर्गों के “कोर्ट मार्शल से हल निकलता है।

भारतीय संविधान में हर परिस्थितियों के वास्ते अलग-अलग धाराएं है किंतु “सरकार” के समक्ष नरमी का रुख वापरना समय की नज़ाक़त होती हैं।मार्शल्ला के बाद स्थिति सामान्य होती हैं और गृहस्थी की गाड़ी पुनः दौड़ती है।कहते हैं पत्नी, पति की हमराज होती है।शादी के प्रारंभिक काल में पत्नी चंद्रमुखी, बगलामुखी, सुआमुखी नजराती है। गृहस्थ फसल उत्पादन के बाद अपेक्षाएं जब बढ़ती है और पूर्तियाँ न होती हैं तो बीवियां सूर्यमुखी दिखती है।गृहस्थ आश्रम के समापन पर जब अनन्त उम्मीदें पति से बढ़ जाती हैं तो वो ज्वालामुखी लगती हैं।हिचकोले खाती परिवार गाड़ी के चलने पर बेचारा पति “कालमुखी” हो जाता है और काल के कराल हाथों में विकराल रूप धार कर,दीन दुनिया से वो कूच कर जाता हैं।कभी एक समाचार पढ़ा था कि एक दुर्दांत डकैत की कमान उसकी पत्नी के हाथ में रही,पढ़कर मैं तो पूरा हिल गया।डकैत,जिसकी कल्पना से अच्छो को पसीना टपक पड़े,वो खौफ़जदा शख्स भी पत्नी रूपी ‘बला’से डरता है, सुनकर शॉक्ड हो गया,जो अभी तक खुद को हीन महसूसता था,उससे मुक्त पाया।डाकू का भयावह,क्रूर,कुटिल चेहरा जो फिल्मों से साभार रहा,उसकी कल्पना भर से हास्यास्पद वाक्या बन गया।

बड़ी लंबी,झबरीली,घनघोर मूछें,वीभत्स, काला भयावह फेस,बड़ी टब्बा-टब्बा आँखे जिसे देखकर बच्चे तो बच्चे,बड़े आदमी तक पोटा कर दें,ऐसी शख्सियत की कमान उसकी बीवी के हाथ मे,जानकर मैं चकित हो गया।इतने खतरनाक, ख़ौफ़ज़दा चरित्र को अपने नियंत्रण में करने वाली पत्नी रूपी महाबला खुद कितनी घातक,करूँ वीरांगना होगी?गर एक डकैत अपनी पत्नी के सम्मुख आत्मसमर्पण की मुद्रा में नतमस्तक हो तो ये खबरनवीस के लिए एक प्रमुख समाचार बन जाता है और दूसरी तरफ मैं जो अपने दाम्पत्य जीवन के चार दशक सफलता पूर्वक काटकर पत्नी की कमान में 41वर्षा से चल रहा हूँ परंतु घोर अफ़सोसनाक है कि इसे किसी भी दैनिक ने प्रमुख या अदनी सी न्यूज तक नहीं बनी?ये बहुत नाइंसाफी है।अस्सी के दशक में सातवें फेरे के साथ ही मैंने खुद को अपनी महामना पत्नी के सामें,समर्पित भाव से सौंप दिया।अब चाहे ‘ज़हर दें या ज्ञान दें’ की तर्ज़ पर स्वयं को हवाले करने के पश्चात मैंने कभी पीछे मुड़कर देखने की ज़ुर्रत तक नहीं की।मैंबेचारा,मुच्छमुंडा,अपनी घराली का गरीब पति “कोल्हू के बैल की मानिंद तभी से जुता हुआ हूँ।समाज,परिजन ने सैकड़ों बार मुझे उलाहना दिया,ताने कसे मेरे पीठ में छूरे घोंपने वाले यार-दोस्तों ने मुझे जोरू का गुलाम,पत्नी भक्त,बीवी का सैंडिल जैसे नामों से नवाजा पर अपन न तो टस से मस हुए न ही उसूलों से डिगे!

इतना त्याग,समर्पण के बाद भी हमारी खबर अखबार तक नही पहुंची,न छपी।बहुत अफसोस है।मैंने तो चार दशक पहले से ही अपनी पत्नी से डरने के तानों की परवाह करना छोड़ दी थी।हमारे देश में एक दो नही करोड़ों पति सदियों से अपनी पत्नियों से संचालित, नियंत्रित,भयभीत होते आए हैं।ये कोई अजूबा नही है परंतु दुख ये है कि इन कारनामों का खुला चिट्ठा इन अखबारों ने कभी छापने की हिमाकत तक नहीं की?शायद संपादक जी की भी डोर उनकी पत्नी जी के हाथ मे होने से ये साहस उजागर न हो सका?पत्नी परिवार की कंट्रोलर तो होती ही है।अमूमन लोग पत्नी को गृह मंत्री, वित्तमंत्री, ग्रह मंत्री तो कहते ही है और ये मिसाल भी देते है कि सुप्रीम कोर्ट के सम्मुख कोई दलील नही चलती है।इससे विचारा जा सकता है कि भारतीय पत्नियों का समाज,देश में कितना ऊंचा स्थान है?बात न सुनने वाली पत्नी ही अपने पति की कमान संभाल कर संचालित करती है।आजू-बाजू के परिवारों का गहन अध्ययन करने से निष्कर्ष निकला कि हर ब्यूटीफुल पति एक तगड़े अनुशासन की कड़ी डोर से जकड़ा,कायदों को पकड़ा हुआ है और पत्नी की चौतरफा खौंफ,कायदे-कानून की लक्ष्मण रेखा से बंधा हुआ है।जिसे अपने गृह(ग्रह)मंत्री के आदेशों का पालन करना है।पति यदि चुस्त-दुरुस्त कम्प्यूटर है तो उसकी पत्नी रिमोट है।चाहे कितना भी बड़ा शख्स हो उसकी नियंत्रण रेखा उसकी पत्नी है?कई-कई महामना तो इतनी खूंखार होती हैं कि उसकी महीन आवाज से ही पति हिलने को लगता है?पति के लिए पत्नी के ये रूप होते है

कामना,वासना,चेतना,प्रेरणा,भावना,दुर्भावना और उत्पीड़ना!शादीशुदा गर अच्छा लेखक है तो बीवी प्रेरणा है।यदि व्यक्ति सात फेरे के बाद सर्वथा मौलिक,अप्रसारित,अप्रकाशित, प्रमाणित सा अस्त व्यस्त, त्रस्त सा दिखे तो “उत्पीड़ना” वाला रूप पक्का जानो?पत्नी वह सेवफल है जिसे छील कर या छिलके सहित खाने पर भी एक सा स्वाद आता है।आज तक विरलें वीर पुरुषों ने ही इसका स्वाद कसैला,खारा,कड़वा,खट्टा बताया होगा?वर्ना तो उसका हाथ लगते ही चाय,चीनी से सराबोर मीठी लगने लगती हैं।
मैं अपनी कलम को तीखी करके घर का “लॉ इन ऑर्डर” बेकाबू और बिगाड़ना नही चाहता हूँ अतः ये व्यंग्य उन्हें ही समर्पित करता हूँ।
(सर्वथा मौलिक,अप्रसारित,अप्रकाशित, प्रमाणित)

error: Content is protected !!