जत्थेदार संतोख सिंह की पंथक गतिविधियां को वक्ताओं ने याद किया

नई दिल्ली : दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के पूर्व अध्यक्ष जत्थेदार संतोख सिंह के 94वें जन्मदिन के अवसर पर विद्वान वक्ताओं ने “जत्थेदार संतोख सिंह जी की सिख पंथ को देन” विषय पर विचार गोष्ठी में भाग लिया। गुरुद्वारा साहिब मोती पहाड़ी, राजिंदर प्लेस में हुई इस विचार गोष्ठी में दिल्ली के गणमान्य सिख शामिल हुए। वक्ताओं ने जत्थेदार संतोख सिंह के साथ अपनी मिठ्ठी-कड़वी यादें साझा करते हुए उन्हें पंथ की निडर आवाज और कौम के शैक्षणिक संस्थानों की श्रृंखला के शिल्पकार के रूप में परिभाषित किया। पंजाबी यूनिवर्सिटी पटियाला के पूर्व वाइस चांसलर डॉ. जसपाल सिंह, दिल्ली कमेटी के पूर्व अध्यक्ष परमजीत सिंह सरना, ऑल इंडिया सिख स्टूडेंट्स फेडरेशन और पंजाब एंड सिंध बैंक दिल्ली से जुड़े रहे कुलबीर सिंह दिल्ली, अकाली नेता कुलदीप सिंह भोगल, सिख विचारक हरिंदरपाल सिंह, दिल्ली कमेटी सदस्य सतनाम सिंह खालसा, बाबा बंदा सिंह बहादर संप्रदाय के वेद मक्कड़ और जत्थेदार संतोख सिंह के प्रशंसक जगजीत सिंह साहनी ने इस अवसर पर विचार व्यक्त किए। जत्थेदार संतोख सिंह के राजनीतिक उत्तराधिकारी तथा सुपुत्र व जागो पार्टी के अध्यक्ष मनजीत सिंह जीके ने आए हुए अतिथियों व गणमान्य लोगों का धन्यवाद किया। जबकि मंच संचालन की जिम्मेदारी डॉक्टर परमिंदर पाल सिंह ने निभाई। कार्यक्रम की शुरुआत रागी जत्थे द्वारा गुरबाणी कीर्तन से हुई और समापन पंथ की चढदीकला की अरदास से हुई।
डॉ. जसपाल सिंह ने कहा कि बेशक जत्थेदार संतोख सिंह खुद कम पढ़े-लिखे थे, लेकिन शिक्षण संस्थानों की स्थापना के लिए उनका जज्बा किसी जुनून से कम नहीं था। अगर उन्होंने मन में यह ठान लिया होता था कि उन्हें इस जमीन पर कॉलेज खोलना है, तो उस काम को कोई नहीं रोक सकता था। जत्थेदार संतोख सिंह सीधी-सादी बातों को बेबाकी से व्यक्त करते थे, यही उनकी अनूठी शैली थी। जत्थेदार संतोख सिंह देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और संत जरनैल सिंह भिंडरावाले के साथ एक समय में खड़े थे। बेशक यह विचारधाराओं का सीधा टकराव था। लेकिन सरकार  के साथ रहते हुए भी उन्होंने पंथक भावनाओं का कभी त्याग नहीं किया था। परमजीत सिंह सरना ने जत्थेदार संतोख सिंह को दूरदर्शी सोच का मालिक बताते हुए कहा कि उनमें व्यक्तियों की शख्शियत और काबिलियत मापने की अजीब कला थी। यही वजह थी कि जत्थेदार संतोख सिंह ने पहली बार दिल्ली कमेटी के सदस्य बने डॉ. जसपाल सिंह को महासचिव बनाया था। जब जत्थेदार संतोख सिंह के जत्थेदार गुरचरण सिंह टोहरा के साथ संबंध तनावपूर्ण थे, तब भी जत्थेदार संतोख सिंह ने डॉ. हरमीत सिंह को दिल्ली कमेटी का संयुक्त सचिव बनाया था। सरना ने मलाल जताते हुए कहा कि जत्थेदार संतोख सिंह अपने सदस्यों को किस तरह संभालते थे, वो हमें नहीं आता। गुरु में उनका विश्वास और संगतों से सेवाएं करवाने का उनका अनूठा तरीका हमें बहुत कुछ सीखने को प्रेरित करता है।
मनजीत सिंह जीके ने कहा कि उनके पिता के व्यक्तित्व का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इंदिरा गांधी ने उन्हें दिल्ली की सिख राजनीति से हटाने और फिर उन्हें वापस लाने के लिए दिल्ली कमेटी एक्ट में दो बार संशोधन करने के लिए संसद की मदद ली थी। इसका सबसे बड़ा कारण सिखों की जत्थेदार संतोख सिंह के प्रति दीवानगी थी। कुलबीर सिंह दिल्ली ने गुरुद्वारा शीशगंज साहिब की कोतवाली और कुलदीप सिंह भोगल ने बाला साहिब अस्पताल की जमीन सरकार से कौम को दिलाने के जत्थेदार संतोख सिंह के सफ़र के बारे में बताया। इतिहासकारों की मदद से महरौली में बाबा बंदा सिंह बहादर के शहीद स्थल का पता लगाने और उस स्थान पर गुरुद्वारा साहिब स्थापित करने की जत्थेदार संतोख सिंह की सेवा को वेद मक्कड़ ने एक बड़े कार्य के रूप में गिनाया। जगजीत सिंह साहनी ने जत्थेदार संतोख सिंह की सोच को दिल्ली कमेटी में वापस लाने के लिए सरना और जीके को एक साथ आने की अपील की।
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